शीईयत का मुकदमा लिखने की ज़रूरत क्यों महसूस की गई?
शीईयों के खिलाफ मुखतलिफ़ ज़मानों में गिरादो, उड़ादो, तबाह करदो, फना करदो की आवेजें बुलन्द होती रही हैं, शीईयों के बारे में यह “मिटादो और इन्हें ख़त्म करदो” का नज़रया कैसे परवान चढ़ा? जब हम इस के पीछे कार फ़रमा अवामिल का गौर से जायेजा लेते हैं तो पता चलता है कि यह सब उस गलीज़ प्रोपैगन्डे का रद्दे अमल है जो शीईयों के ख़िलाफ़ बनु उमय्या और बनु अब्बास के ज़माने से तसलसुल से जारी है, शीईयों के बारे में यह तर्जे अमल क्यों इख़तियार किया गया? इस की एक बड़ी वजह बकौल एक शीईया आलिम यह नज़र आती है के बनु उमय्या और बनु अब्बास के हुकमरानों ने जब यह बात मेहसूस की कि उन में बनी हाशिम जैसे फ़जाइल व मनाकिब मौजूद नहीं हैं जो इन की इज्जत व तकरीम का सबब बन सकें तो इन्होंने अपने ज़र ख़रीद अहल कलम से कभी अपने हक़ में वैसे ही फ़ज़ाइल व मनाकिब की अहादीस बनवाई और कभी ऐसी अहादीस तैयार करवाई जिन से आले मोहम्मद अ० की इज्जत में कमी वाकेय हो सके, जब इन्हें इस सिलसिले में हस्बे मन्शा कामयाबी नसीब न हो सकी तो इन्होंने एक तीसरा हरबा इस्तेमाल किया और वह यह कि आले मोहम्मद स० के मान्ने वालों के ख़िलाफ़ तरह-तरह की तोहमतें तराशी गई, घटया और बेबुनियाद इलज़ामात उन पर आइद किये गये और ऐसे अकाइद शीईयों के जिम्मे लगाये गये जिन से शीईयों का दूर का भी तअल्लुक नहीं था और बकौल सय्यद असद हैदर नजफ़ी शीईयों के खिलाफ “तोहमतों का सिलसिला शुरू हो गया” खिलाफे वाक्या बयानात आम होने लगे, अवाम के ज़हनों में खुद साखता इलज़ामात उतारे जाने लगे
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