इस किताब में पढ़िये
एक इन्सान मुख्तलिफ़ मज़ाहिब के तूफानों के दरमियान जहां हर शख्स अपने बारे में हक्कानियत का दावेदार है किस तरह तहक़ीके़ हक़ के मरहले तय करता है? इस ऐतेमाद के साथ के रब्बुलआलेमीन के नज़दीक हक़ सिर्फ एक है जिसमें किसी शक और इख़्तिलाफ की गुन्जाईश नहीं है। ‘और हक़ के बाद गुमराही के सिवा कुछ नही है’ । इस किताब में इस सवाल का जवाब तलाश किया गया है कि हक़ क्या है ? और मुस्सनिफ़ ने पूरे सिदके़ अमल और सिदके़ नीयत के साथ तहक़ीके हक़ का फ़र्ज़ अदा किया है। नाज़रीने किराम का भी फ़र्ज़ है कि इस किताब का खुलूसे नीयत के साथ मुतालआ करें और उन दलीलों और सुबूतों पर गौर करें जो हक़ की वज़ाहत मज़कूरा सवाल के जवाब के लिए बेहतरीन जखीरा है । रब्बुलआलेमीन राहे हक़ की हिदायत करने वाला और तौफ़ीक़ देने वाला है।
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